जानकर,
मेरी खैरियत
तुमने मुझे कर दिया रूखसत
कुछ
दिन अच्छे लगे, हम, हमारा साथ
और फिर
नजर किया मुझमें, अपना, अपनी बरकत
जायजा
कर, इम्तिहाँ लिए, मेरे हजारों बार
मुझे
छोड़कर सब याद थे, तेरी ख़ुशी, तेरी हसरत
जताकर,
मोहब्बत, तूने पाना चाहा 'चाँद'
मेरे
इश्क की क्या औकात, वहाँ बस ! तू, तेरी शोहरत
देखकर,
आवारगी, हँसकर मुझसे कहा
ना
दौलत, ना शोहरत, फिर काहे की उल्फत
छोड़कर,
जाते समय, तूने देखी, सुर्ख आँखें मेरी
रोये
ना तुम, बदले ना तुम, बदली ना तेरी फितरत
ना
चाहकर, भी जाने दिया, याद आया वक़्त वो
कि
तेरी ख़ुशी के लिए तुझे भी, कर दिया रूखसत
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