Wednesday, June 5, 2013

परि+आवरण = पर्यावरण

अर्थात हमारे चारों ओर का आवरण ।



परिभाषाओं में शायद सभी जानते होंगे कि पर्यावरण क्या होता है या किसे कहते हैं ? लेकिन परिभाषा जानना ही पर्यावरण को जानना नहीं है।
   'विश्व पर्यावरण दिवस' का आयोजन मात्र एक रस्म अदा करना है। भले ही इस अवसर पर हज़ारों पौधे लगाए जाएँ, पर्यावरण संरक्षण की झूठी क़समें खाई जाएँ, लेकिन इस एक दिन को छोड़ शेष 364 दिन प्रकृति के प्रति हमारा उदासीन व्यवहार पर्यावरण के प्रति हमारी संवेदनहीनता को प्रदर्शित करता है। आज हमारे पास ना तो शुद्ध पेयजल है और ना ही साँस लेने के लिए शुद्ध हवा । जंगल खाली होते जा रहे हैं, जल के स्रोत समाप्त हो रहे हैं, वनों में रहने वाले वन्य जीव भी लुप्त होते जा रहे हैं। बढ़ते औद्योगीकरण के कारण खेत-खलिहान और वन नष्ट होते जा रहे हैं। कल-कारखानों से निकलते धुएँ से प्राणवायु दूषित हो रही है।
   अगर आदर्श पर्यावरण की बात करें, तो भारत सरकार द्वारा सन 1952 ई. में निर्धारित "राष्ट्रीय वन नीति" के तहत हमारे देश के 33.3% क्षेत्र पर वन होनें चाहिए, लेकिन वास्तविकता इसके एकदम विपरीत है। वर्तमान समय में भारत में केवल् 19.39% भूमि पर ही वनों का विस्तार है। 19 नवंबर 1986 से पर्यावरण संरक्षण अधिनियम लागू हुआ। जिसके अनुसार जल, वायु, भूमि - इन तीनों से संबंधित कारक तथा मानव, पौधों, सूक्ष्म जीव, अन्य जीव आदि पर्यावरण के अंतर्गत आते हैं।
  हमारे देश की सत्तर प्रतिशत आबादी गाँवों में रहती है, जो कि शहरों की ओर पलायन कर रही है। जबकि शहरी जीवन तो वहाँ से भी बुरा है, जहाँ हरियाली कहीं दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती। जंगलों की जगह बहुमंजिली इमारतों ने ले-ली हैं। धरती का तापमान निरंतर बढ़ने के कारण भारत में 50 करोड़ से भी अधिक पाए जाने वाले जानवरों में से पांच करोड़ प्रति वर्ष मर जाते हैं। वन्य प्राणियों  की घटती संख्या पर्यावरण के लिए घातक है, क्योंकि वे प्राकृतिक संतुलन स्थापित करने में सहायक होते हैं। अत: पर्यावरण की दृष्टि से वन्य प्राणियों की रक्षा आवश्यक एवं अनिवार्य है। इसके लिए सरकार एवं लोगों को वन-संरक्षण और वनों के विस्तार की योजना पर गंभीरता से कार्य करना होगा। लोगों को वनीकरण के लाभ समझा कर उनकी सहायता लेनी होगी।
    पर्यावरण की अवहेलना करने के कारण आज अनेक तरह के प्रदूषण हो रहे हैं, जिनमें से प्रमुख कुछ प्रदूषण निम्न हैं--

पर्यावरण प्रदूषण:
पर्यावरण के प्रदूषित होने के मुख्य कारण लगातार बढती आबादी, औद्योगीकरण, वाहनों द्वारा छोड़ा जाने वाला धुआँ, नदियों, तालाबों में गिरता हुआ कचरा, वनों का कटान, खेतों में रसायनों का असंतुलित प्रयोग, पहाड़ों में चट्टानों का खिसकना, मिट्टी का कटान आदि हैं, जिसका सीधा-सा सम्बन्ध वृक्षों की कटाई से है।

जल प्रदूषण:
पृथ्वी के तीन चौथाई भाग पर जल होने के बाद भी केवल 0.3 फीसदी जल ही पीने योग्य है तथा प्रदूषण के कारण 0.3 फीसदी का भी 30 फीसदी जल ही वास्तव में पीने के लायक़ बचा है। निरंतर बढ़ती जनसंख्या, पशु-संख्या, औद्योगीकरण, जल-स्रोतों का दुरुपयोग, कारखानों से निष्कासित रासायनिक पदार्थ, वर्षा में कमी, शव तथा मृत जानवर नदी में फेंक देना, कृषि-उत्पादन बढ़ाने और कीड़ों से रक्षा में प्रयुक्त रासायनिक खाद एवं कीटनाशक, नदियों, जलाशयों में कपड़े धोने, कूड़ा-कचरा फेंकने व मल-मूत्र विसर्जित करने आदि के कारण जल प्रदूषित होता रहा है।

भूमि प्रदूषण:
वनों का विनाश, खदानें, भू-क्षरण, रासायनिक खाद तथा कीटनाशक दवाओं का उपयोग आदि के कारण भूमि प्रदूषण बढ़ रहा है। मृदा, जल, वायु और ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम पर्यावरण की रक्षा के लिए अनिवार्य है।

ध्वनि प्रदूषण:
मशीनों, लाउडस्पीकरों, कारों, अनियंत्रित जनसंख्या, शहरों में यातायात के विविध साधनों, टेलीफोन और मोबाइल पर तेज आवाज में बातें कर, सामाजिक एवं सांस्कृतिक समारोहों में ध्वनि विस्तारक यंत्रों तथा कल-कारखानों के कारण ध्वनि प्रदूषण एक उग्र रूप धारण कर चुका है, जिसके कारण लोगों में चिडचिडापन, गुस्सैल प्रवत्ति, बच्चों में बहरापन एवं अनेक बीमारियाँ पैदा हो रही हैं।

वायु प्रदूषण:
घरेलू ईंधन, वाहनों की बढ़ती संख्या और औद्योगिक कारखानें वायु प्रदूषण के प्रमुख कारक हैं।

पर्यावरण संरक्षण कैसे करें --
अधिक से अधिक वृक्ष लगाएँ।
निजी वाहनों का उपयोग अधिक नहीं करते हुए सार्वजनिक साधन प्रयोग करें।
वर्षा जल संग्रहण अपनाएँ।
उपयोग नहीं होने पर बिजली व्यर्थ ना जलाएँ।
रेडियो-टीवी आदि की आवाज धीमी रखें।
फोन पर बात करते समय धीमी आवाज में बात करें।
पानी बर्बाद ना करें।
पॉलिथीन का उपयोग न करते हुए, कचरा, कचरा पात्र में ही डालें।

अपने जन्मदिन, विवाह की वर्षगाँठ या अन्य किसी यादगार मौके पर पौधारोपण करें एवं अन्य लोगों को भी इसका महत्व समझाएँ तथा उपहार में भी पौधे ही दें।



© Do Not Copy Without Permission
Photo Source: Google

No comments:

Post a Comment