Tuesday, June 11, 2013

बस शब्दों का ही फेरबदल !




एक बानगी, चंद शब्दों की
एक मंजर, चंद लम्हों का
एक लेखनी, लिए हाथों में
हर बार ही कर, उलट - पुलट
उन चंद लम्हों को, शब्द दे कर
बना दी जाती है, एक कविता

गर उलटे हों शब्द, तो दुखमय मन
कोई रंज याद दिला देता
जो जुड़े शब्द सीधे - सीधे
मन ख़ुशी समझ, खुश हो जाता
ये समझ है कि नासमझी
जो दिखाती है रंज - ओ - ख़ुशी
बस चंद शब्दों का फेरबदल
जो मन में छल पैदा कर जाता

मन भाव, कितने सुखद - दुखद
इक छंद बदलते, बदल जाता
कुछ नए लम्हों के जुड़ने से
शब्दों का भाव बदल जाता
कोई हंसी - ख़ुशी, कोई व्यंग - बाण
कोई उन्मुक्त भाव को दर्शाता
बस शब्दों का ही फेरबदल
जो एक और कविता बना जाता




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