Monday, August 12, 2013

हाँ तुम मेरे हो



इन बीते लम्हों में
कितना देख पाया हूँ तुम्हें
कभी देखा था एक बार जो
दिल में घर कर गया इतना
कि बार-बार उभरती
जीवंत तस्वीर तुम्हारी
उस खुशनुमा पल से
ना बाहर जाने देती है
ना अन्दर आने देती है
तेरी उस मस्त आवारगी में
खो दिया है अपने-आपको
ढूँढता हूँ तुम्हें हरपल
कहीं बातों में, कहीं यादों में
कहीं बागों में, कहीं ख़्वाबों में
उम्मीदें लिए हुए पलकें मेरी
निहारती हैं राहें
कि लौट आओगे एक दिन
मेरे खो चुके 'आज' के साथ
फिर कहोगे मुझसे
हाँ तुम मेरे हो
हाँ तुम मेरे हो


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